“यदि व्यक्ति के इरादों में जान है तो वह पहाड़ का सीना भी चीर सकता है“
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दोस्तों India Ke Mountain Man के नाम से विख्यात बिहार के एक छोटे से गांव के रहने वाले Dashrath Manjhi के जीवन पर आधारित यह Dashrath Manjhi Biography in Hindi आपके जीवन व सोचने के नजरिये को बदल सकती है। दोस्तों ये वही दसरथ मांझी हैं जिन्होंने अपनी पत्नी की मौत का बदला लेने की लिए 360 फुट लंबे, 30 फुट चौड़े और 25 फुट ऊंचे पहाड़ को काटकर उसमे रास्ता बना दिया था।
आप चाहे एक महिला है या पुरुष, यह Dashrath Manjhi की Life Story आपके लिए एक Motivational Life Story साबित हो सकती है।
आपको इस दशरथ मांझी की इस जीवनी से बहुत कुछ सीखने को मिलेगा और यदि आप जीवन में कुछ बनना चाहते है, कुछ करना चाहते है, लेकिन जीवन की कठिनाइयों से हार मान कर बैठ गए है। तो यक़ीन मानिये दोस्तों, इस Hindi Biography Of Dashrath Manjhi को पढ़ने के बाद आप अपनी जिन्दगी के प्रति दोबारा से Motivate व Inspire हो जाओगे।
Mountain Man Dashrath Manjhi Biography in Hindi

भारत के माउंटेन मैन दशरथ मांझी की बायोग्राफी हिंदी में।
एक कहावत हम अक्सर सुनते हैं कि “यदि व्यक्ति के इरादों में जान है तो वह पहाड़ का सीना भी चीर सकता है“ आज मैं आपको एक ऐसे ही शख्स के बारे में बताने जा रहा हूं जिसने ऐसा करके दिखाया है।
प्यार की निशानी ताज महल के बारे में हम सभी ने सुना होगा और हम में से अधिकतर यह भी जानते होंगे कि ताजमहल को किसने और क्यों बनवाया था। ताज़महल को बनाने में भी हज़ारों मजदूरों ने अपना ख़ून पसीना बहाया हैं। लेकिन इस Inspirational Biography आपको एक ऐसे व्यक्ति के बारे में बताने जा रहा हूं, जिसने अकेले ने ही 360 फुट लंबे, 30 फुट चौड़े और 25 फुट ऊंचे पहाड़ को काटकर वहां रास्ता बना दिया।
1. पहाड़ ही था गांव के लिए सबसे बड़ी मुसीबत।
द माउंटेन मैन के नाम से विख्यात दशरथ मांझी का जन्म बिहार के गया जिले के एक छोटे से गांव गहलौर में 1934 में हुआ था। यह गांव एक पहाड़ की गोदी में बसा एक बहुत ही पिछड़ा सा गांव है। गहलौर गांव के सभी गांव वासियों को अपनी छोटी से छोटी जरूरत के लिए भी पहाड़ को पार करके पहाड़ की दूसरी तरफ एक छोटे से कस्बे में जाना पड़ता था।
पहाड़ को पार करने के 2 तरीके थे या तो पहाड़ को चढ़कर पार करो जिसमें तीखी चट्टानों से गिरने का खतरा रहता था या फिर पहाड़ के साथ-साथ बने घुमावदार रास्ते से पहाड़ को पार करो जिसमें आधे घंटे की दूरी को तय करने में पूरा दिन लग जाता था।
गांव के लोग इस पहाड़ के कारण बाकी दुनिया से मानो कटे हुए थे। कई बार लोग समय बचाने की खातिर पहाड़ को चढ़कर पार करने की कोशिश करते और तीखी चट्टानों से फिसल कर दुर्घटना का शिकार हो जाते थे। इस पहाड़ ने कई लोगों को समय पूर्व ही मृत्यु का निवाला बना लिया था।
2. बचपन में सहा जातिगत भेदभाव।
दशरथ मांझी मुसहर जाति से संबंध रखते हैं, जिसे बिहार में एक छोटी जाति समझा जाता है। दशरथ मांझी के पिता व उनकी जाति के अन्य लोग गांव के मुखिया के यहां बंधुआ मजदूरी किया करते थे। उस समय बिहार समेत पूरे देश में जाति व्यवस्था व छुआछूत का दंश फैला हुआ था। दशरथ मांझी भी इससे अछूते नहीं रहे।
3. छोटी सी उम्र में ही कर दी घरवालों ने शादी।

छोटी उम्र में ही उनकी शादी पास के गांव की एक लड़की से हो गई थी। दशरथ मांझी की पत्नी का नाम फगुनिया था। लेकिन अभी तक उनका गौना ( लड़की को ससुराल भेजना ) नहीं हुआ था। शादी के बाद दशरथ मांझी को छोटी उम्र में ही जब मुखिया के यहां बंधुओं बनने की बात आई तो वे गांव से भागकर धनबाद चले गए।
जहां दशरथ मांझी ने धनबाद की कोयला खानों में कई सालों तक काम किया। यहां काम करने के कुछ साल बाद ही दशरथ मांझी वापस अपने गांव लौट आए। इस दौरान उनकी मां की मृत्यु हो चुकी थी। घर में केवल वे और उनके एक बूढ़े बाप थे।
जब घर में एक औरत की कमी महसूस हुई तो वह फगुनिया के पिता से मिलने के लिए उनके गांव चले गए। सालों तक कोयला खान में काम करते करते दशरथ मांझी का रंग बिल्कुल काला पड़ गया था। दशरथ की यह दशा देखकर फगुनिया के पिता ने फगुनिया को दशरथ मांझी के साथ भेजने से मना कर दिया। उन्होंने दशरथ से कहा कि वे अपनी बेटी की शादी कहीं और करना चाहते है।
दशरथ मांझी ने फगुनिया के पिता व गांव वालों को बहुत समझाया कि वह फगुनिया से बहुत प्यार करता है और उसे हमेशा खुश रखेगा। लेकिन उसकी बात किसी ने ना सुनी। आखिरकार दशरथ मांझी ने फगुनिया को घर से भगाने का कड़ा फैसला लेना पड़ा।
4. परिवार में आई खुशियां।
दशरथ मांझी अपनी पत्नी फगुनिया व अपने बूढ़े पिता के साथ बहुत खुश थे। वह गांव में ही या फिर पहाड़ पार करके कस्बे में जाता और जो भी मजदूरी मिलती वह कर लेता था।
कुछ साल बाद ही उन्हें बेटा हुआ, जिसके कारण पूरे परिवार में खुशी की लहर फैल गई। परिवार में बच्चे की किलकारियां गूंजने लगी। अब उन्हें सिर्फ एक ही बात की कमी महसूस हो रही थी कि घर में एक लड़की और आ जाए। लड़के के जन्म के कुछ समय बाद ही फगुनिया दोबारा पेट से थी और पूरा परिवार लड़की होने की उम्मीद लगाए बैठा था।
5. पत्नी फगुनिआ की पहाड़ से गिर कर मौत।
लेकिन इंसान का चाहा हमेशा पूरा नहीं होता। एक दिन दशरथ मांझी पहाड़ को पार करके एक दूसरे गांव में मजदूरी करने गया हुआ था। जब फगुनिया उसका खाना लेकर जा रही थी तो पहाड़ की एक तीखी ढलान से उसका पैर फिसल गया और वह लुढ़कती, पत्थरों से टकराती पहाड़ से नीचे आ गिरी।
जब दशरथ मांझी को इस बात का पता चला तो भागता हुआ उसके पास गया। उस समय फगुनिया लगभग अधमरी हालत में थी। दशरथ मांझी यह सब देख कर हताश हो गया। उसके हाथ-पैर फूल गए। दशरथ मांझी ने गांव के ही एक व्यक्ति को लेकर लकड़ी व कपड़े से एक पालकी बनाई और उसमें फगुनिया को डाल कर अस्पताल की तरफ भागे।
उन्होंने फगुनिया को अस्पताल ले जाने का फैसला तो कर लिया था। लेकिन यह इतना आसान नहीं था। इसके लिए उन्हें पहाड़ को पार करके जाना पड़ता। पहाड़ पार करके अस्पताल तक पहुंचने में उनका बहुत समय लग गया।
अस्पताल पहुंचने से कुछ समय पहले ही फगुनिया की मृत्यु हो चुकी थी। अस्पताल पहुंचने पर डॉक्टरों ने कहा कि यदि वे उसे कुछ समय पहले ले आते तो वे उसकी जान बचा सकते थे। लेकिन डॉक्टरों ने फगुनिया के पेट में पल रही बच्ची को बचा लिया था।
6. पत्नी की मौत का दोषी पहाड़ को मानकर पहाड़ काटने की ठान ली।

फगुनिया की मौत की खबर सुनकर दशरथ मांझी को मानो झटका सा लगा। वे अंदर तक हिला गए। फगुनिया की मौत का जिम्मेदार वे पहाड़ को मान रहे थे। वे सोच रहे थे कि यदि यह पहाड़ ना होता तो वे फगुनिया को समय से अस्पताल ले जा पाते और फगुनिया की जान बच जाती।
इस बात ने उन्हें अंदर तक झकझोर दिया था। इसलिए उन्होंने पहाड़ को काटकर उसमें से रास्ता बनाने की ठान ली, शायद वह अपनी पत्नी की मौत का बदला इस पहाड़ से लेना चाहता था।
7. 22 साल की कड़ी मेहनत के बाद चीर दिया पहाड़ का सीना।
दशरथ मांझी ने एक हथौड़ा व छेंनी उठाई और निकल पड़े पहाड़ काटने की अनंत यात्रा पर, क्योंकि पहाड़ काटना कोई एक दिन की बात तो है नहीं और खुद दशरथ मांझी को भी इस बात का पता नहीं था कि इसमें कितना समय लगने वाला है। लेकिन उन्हें एक बात का पता था कि बिना पहाड़ काटे उनको रुकना नहीं है।
उन्हें तो बस अपनी पत्नी फगुनिया की मृत्यु पर खुद से किया गया वादा याद था। अब चाहे फिर बरसात हो, गर्मी हो या ठंड वे नहीं रुकते थे। हर सुबह अपनी छिन्नी हथोड़ा उठाकर पहाड़ काटने के अपने काम पर निकल जाते।
उनके सिर पर हमेशा यही धुन सवार रहती थी। ना ढंग से खाते थे ना पीते थे। सिर और दाढ़ी के बाल बढ़ गए थे। सभी उन्हें पागल पागल कहकर चिढ़ाते। लेकिन उन पर किसी भी बात का कोई असर ही नहीं होता था। वह तो बस अपनी धुन में ही मगन रहते थे।
कहते हैं कि जिस पर जग हंसा है, उसी ने इतिहास रचा है। दशरथ मांझी की लगन, विश्वास और 22 साल की कड़ी मेहनत के बाद आखिरकार वे अपने लक्ष्य में कामयाब हुए और 360 फुट लंबा 30 फुट चौड़ा और 25 फुट ऊंचे पहाड़ का सीना काट कर वहां से रास्ता बना दिया।
22 साल के इस लंबे सफर में उन्हें बहुत बार बड़ी बड़ी मुसीबतों का सामना करना पड़ा। लेकिन दशरथ मांझी पता नहीं किस मिट्टी के बने थे जो कभी हार ही नहीं मानते थे। दशरथ मांझी यह नहीं जानते थे कि इस पहाड़ को काटने में उन्हें 22 साल का समय लग जाएगा, वह तो हर रोज एक नई उमंग के साथ जाते थे और हर रोज पहाड़ से कहते जब तक तोडूंगा नहीं तब तक छोडूंगा नहीं।
8. अब पूरा गांव देता है उनके होंसलें की मिसाल।
पहले जहां पहाड़ को पार करने में पूरा दिन लग जाया करता था। वही दूरी अब आधे घंटे में पूरी हो जाती है। अब पूरा गांव उनके हौसलें और हिम्मत की मिसालें देता है। कहते हैं कि संघर्ष में आदमी अकेला होता है, सफलता के समय पूरी दुनिया उसके साथ होती है। आज गहलौर समेत 60 से ज्यादा अन्य गांव भी इस रास्ते का प्रयोग करते हैं।
9. दशरथ मांझी की कैंसर से मौत।

17 अगस्त 2007 को दिल्ली के एम्स में 78 साल की उम्र में दशरथ मांझी का कैंसर की वजह से निधन हो गया। बेशक दशरथ मांझी आज इस दुनिया में नहीं है। लेकिन उनके बनाए रास्ते से गुजरने वाला हर व्यक्ति सदियों तक उन्हें याद करता रहेगा।
10. दशरथ मांझी: द माउंटेन मैन की उपलब्धियां।
दशरथ मांझी, द माउंटेन मैन के नाम से विख्यात हैं। उनकी इस उपलब्धि के लिए बिहार सरकार द्वारा 2006 में सामाजिक सेवा के क्षेत्र में पदम श्री सम्मान के लिए उनके नाम का प्रस्ताव किया गया था। बिहार सरकार द्वारा दशरथ मांझी के नाम पर गहलौर से 3 किलोमीटर लंबी सड़क निर्माण का कार्य करवाया गया है। दशरथ मांझी के नाम पर गहलौर में एक सरकारी अस्पताल भी बनवाया गया है।
11. उनके जीवन संघर्ष पर बन चुकी है कई फ़िल्में।
2012 में फिल्म प्रभाग द्वारा कुमुद रंजन के निर्देशन में एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म ” The man who moved the mountain ” प्रकाशित की गई थी। 7 जुलाई 2012 में ही केतन मेहता के निर्देशन में दशरथ मांझी के जीवन पर आधारित एक और फिल्म-: “Manjhi : The Mountain Man” बनाने की घोषणा की गई थी,जो 2015 में रिलीज हुई।
दशरथ मांझी के जीवन पर आधारित फिल्म Manjhi : The Mountain Man में दशरथ मांझी की भूमिका नवाज़ुद्दीन सिद्धकी व दशरथ मांझी की वाइफ फाल्गुनी देवी की भूमिका राधिका आप्टे ने निभाई है। दुनिया में ऐसे बहुत कम लोग हैं जो इस तरह के अविश्वसनीय व चौंकाने वाले काम करते हैं और सदियों तक याद रखे जाते हैं। हमें दशरथ मांझी से एक बात सीखने की जरूरत है कि कितनी भी कठिनाई आए अपने लक्ष्य से कभी न डिगे और अपनी धुन में हमेशा लगे रहे।
12. दशरथ मांझी की इस जीवनी से आपने क्या सीखा ?

जब एक अकेला व्यक्ति बिना संसाधनों के सिर्फ एक छिन्न्नी व हथौड़े के दम पर 360 फुट लंबे, 30 फुट चौड़े, 25 फुट ऊंचे पहाड़ को काट सकता है। और 22 सालों तक अपने हौसलें व लगन को बनाए रख सकता है, तो हम क्यों नहीं कर सकते।
हमारे लक्ष्य इससे अलग हो सकते हैं। हो सकता है हमें अपने लक्ष्यों को हासिल करने में कठिनाइयां आए। लेकिन क्या एक पहाड़ काटने से भी ज्यादा कठिन कुछ हो सकता है।
Dashrath Manjhi के बारे में रोचक तथ्य ( FAQ )
Dashrath Manjhi कौन थे?
दशरथ मांझी बिहार राज्य के गया ज़िले के एक छोटे से गावं गेहलौर के रहने वाले थे। वो एक ग़रीब और पिछड़ी मुसहर जाति से सम्बन्ध रखते थे।
Dashrath Manjhi कहाँ के रहने वाले थे?
दशरथ मांझी बिहार राज्य के गया ज़िले के एक छोटे से गावं गेहलौर के रहने वाले थे।
Dashrath Manjhi की Movie का नाम क्या है?
दशरथ माँझी के जीवन पर आधारित अब तक दो फ़िल्में बन चुकी है। उनके जीवन पर आधारित पहली डॉक्युमेंटरी फ़िल्म 2012 में फिल्म प्रभाग द्वारा कुमुद रंजन के निर्देशन में बनी थी जिसका नाम ‘The man who moved the mountain‘ था। दशरथ माँझी के जीवन पर आधारित दूसरी फ़िल्म का नाम ‘Manjhi : The Mountain Man‘ था। इस फ़िल्म का निर्देशन केतन मेहता के द्वारा किया गया था। यह फ़िल्म 2015 में रिलीज़ हुई थी।
Dashrath Manjhi की Wife का क्या नाम था?
दशरथ मांझी की पत्नी का नाम फगुनिया था। फगुनिआ पास के ही एक छोटे से गावँ की रहने वाली थी। बचपन में ही दोनों की शादी कर दी गई थी।
Dashrath Manjhi की Family कहाँ है?
दशरथ मांझी के बचपन में ही उनकी माँ की मृत्यु हो गई थी। उनके परिवार में उनके बूढ़े पिता के अलावा उनकी पत्नी फगुनिया, दशरथ मांझी का बेटा भागीरथ माँझी और एक बेटी लौंगिया देवी भी थी।
दशरथ मांझी का परिवार ( Dashrath Manjhi Son ) बिहार में ही रहता है। Covid – 19 के दौरान एक्टर सोनू सूद द्वारा भेजी गई आर्थिक सहायता को दशरथ के परिवार ने लेने से मना कर दिया। हालाँकि Actor Sonu Sud द्वारा भेजे गई खाद्य सामग्री को उन्होंने स्वीकार कर लिया था।
दशरथ माँझी द्वारा बनाए रास्ते ( Dashrath Manjhi Road ) का नाम क्या है?
दशरथ माँझी द्वारा बनाए रास्ते का नाम दशरथ माँझी पथ ( Dashrath Manjhi Road ) रखा गया है। इस Dashrath Manjhi Path ने गया के अतरी और वजीरगंज की दूरी को 55 से 15 किमी कर दिया है। जिसकी वजह से पहले जहां पहाड़ को पार कर वज़ीरगंज पहुंचने में पूरा दिन लग जाया करता था वहीं अब कुछ घंटों में ही यह दूरी तय हो जाती है।
दशरथ माँझी की बेटी ( Dashrath Manjhi Daughter ) कौन है?
दशरथ माँझी की बेटी का नाम लौंगिया देवी था। दशरथ मांझी के पहाड़ काटने के अभियान में उनकी बेटी लौंगिया देवी ने भी उनकी मदद की थी। उस समय लौंगिया देवी बहुत छोटी थी। वह अपने पिता दशरथ मांझी के लिए खाना बनाती थी। कभी कभी अपने नन्हे नन्हे हाथों से हथौड़ा छिन्नी उठाकर पत्थर तोड़ने लग जाती थी।
लौंगिया देवी का 4 दिसंबर 2020 में मगध मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में निधन हो गया। उनका इलाज सरकारी सहायता पर कराया जा रहा था। दशरथ मांझी की मृत्यु के बाद उनके परिवार ने बहुत मुश्किलें झेली। ग़रीबी के कारण उनके बेटे को ईंट भट्ठे पर काम करना पड़ा था।
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ताकि जो लोग जीवन में कुछ करना चाहते है, कुछ बनना चाहते। लेकिन जीवन की मुसीबतों के कारण हार मान कर बैठ गए है वे इस “Hindi Biography Of Dashrath Manjhi” से Inspire और Motivate हो सके।
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