Swami Vivekananda Biography In Hindi
उठो, जागो और तब तक मत रुको, जब तक लक्ष्य प्राप्त ना हो जाए।
~ Swami Vivekananda Quotes
दोस्तों, किसी भी लक्ष्य को हासिल करने के लिए मनुष्य में कुछ चारित्रिक गुणों का होना अति आवश्यक है जैसे साहस, दृढ़ इच्छाशक्ति, विश्वास और लगन आदि। स्वामी विवेकानंद जी की इस प्रेरणादायक जीवनी ( Swami Vivekananda Biography In Hindi ) में हम एक ऐसे महान शख्स के बारे में पढ़ने वाले हैं जिनके अंदर यह सभी गुण कूट-कूट कर भरे हुए थे। यह महान शख्स कोई और नहीं बल्कि स्वामी विवेकानंद जी है, जो भारत में ही नहीं बल्कि भारत के बाहर भी अपने महान व्यक्तित्व के कारण जाने जाते हैं।
स्वामी विवेकानंद जी 19वीं सदी के एक महान समाज सुधारक और एक आध्यात्मिक गुरु थे। स्वामी विवेकानंद जी ने धार्मिक पाखंडवाद, ब्राह्मणवाद और धार्मिक अंधविश्वास का कड़ा विरोध किया व इन विसंगतियों को दूर करने का अथक प्रयास भी किया था। विवेकानंद जी हमेशा से ही युवाओं के प्रेरणा स्त्रोत रहे हैं।
19वीं सदी के एक महान समाज सुधारक स्वामी विवेकानंद जी की सम्पूर्ण जीवनी।

स्वामी विवेकानंद जी कौन हैं | Who is Swami Vivekananda?
स्वामी विवेकानंद जी, जिनके बचपन का नाम नरेंद्र नाथ दत्त था, एक भारतीय हिंदू संत, प्रमुख योग गुरु और भारतीय वेदांत, योग और भारतीय दर्शन का परिचय पश्चिमी जगत से कराने वाले प्रमुख व्यक्ति थे। स्वामी विवेकानंद जी 19वीं सदी के एक प्रमुख भारतीय रहस्यवादी संत थे और रामकृष्ण के शिष्य थे, जो कि पश्चिमी गूढ़तावाद से बहुत ज्यादा प्रभावित थे। इसके अलावा स्वामी विवेकानंद जी ने कई सनातन धर्म सुधार आंदोलनों का भी नेतृत्व किया और औपनिवेशिक भारत में राष्ट्रवाद की अवधारणा में एक महत्वपूर्ण योगदान भी दिया।
स्वामी विवेकानंद जी का जन्म और माता-पिता | Birth and Parents of Swami Vivekananda
स्वामी विवेकानंद जी का जन्म 12 जनवरी 1863 में कोलकाता के एक बंगाली परिवार में मकर संक्रांति के दिन हुआ था। उस समय भारत में अंग्रेजों का राज हुआ करता था और कलकत्ता उस समय भारत की राजधानी थी। इनके बचपन का नाम नरेंद्र नाथ दत्त था और सभी इन्हें प्यार से नरेन या नरेंद्र के नाम से पुकारते थे। स्वामी विवेकानंद जी के आठ भाई-बहन थे।
विवेकानंद जी के पिता विश्वनाथ दत्त कोलकाता उच्च न्यायालय में एक प्रसिद्ध वकील थे और इनके दादा श्री दुर्गा चरण दास जी संस्कृत और फारसी के एक बहुत बड़े विद्वान थे, जो केवल 25 वर्ष की उम्र में संत बन गए थे और घर बार छोड़ दिया था। स्वामी विवेकानंद जी की माता श्रीमती भुवनेश्वरी देवी एक ग्रहणी थी, जो धर्म-कर्म में बहुत विश्वास रखती थी। स्वामी विवेकानंद जी के पिता के तर्कसंगत और प्रगतिशील रवैये और उनकी मां के धार्मिक स्वभाव ने विवेकानंद जी की सोच और व्यक्तित्व को आकार देने में बहुत मदद की।
स्वामी विवेकानंद जी का आरम्भिक जीवन | Early Life of Swami Vivekananda
स्वामी विवेकानंद जी बहुत छोटी सी उम्र से ही आध्यात्मिक चीजों में रूचि लेने लगे थे। वह बचपन में राम, सीता, शिव, हनुमान जैसे देवताओं की फोटो के सामने ध्यान लगा कर बैठ जाते थे। उन्हें तपस्वीयों और भिक्षुओं के साथ भ्रमण करने में बड़ा आनंद आता था। विवेकानंद जी बचपन में बड़े ही शरारती और चंचल स्वभाव के बालक थे। इनके माता-पिता अक्सर इनकी शरारतों से परेशान रहते थे। विवेकानंद जी की मां ने कहा था कि “मैंने भगवान शिव से एक पुत्र देने के लिए प्रार्थना की थी, लेकिन उन्होंने अपना एक राक्षस भेज दिया।”
स्वामी विवेकानंद जी की शिक्षा | Education of Swami Vivekananda
1871 में जब विवेकानंद जी केवल 8 साल के थे, उन्होंने कोलकाता के ही ईश्वर चंद्र विद्यासागर मेट्रोपॉलिटन इंस्टिट्यूट में दाखिला ले लिया और तब तक वहीं पढ़ते रहे जब 1877 में उनका पूरा परिवार कोलकाता छोड़कर रायपुर नहीं चला गया। 1879 में प्रेसिडेंसी कॉलेज के एंट्रेंस एग्जाम में फर्स्ट डिवीजन पाने वाले वे एकमात्र विद्यार्थी थे।
विवेकानंद जी को बचपन से ही पढ़ने का बहुत शौक था। वह एक उत्साही पाठक थे। वह दर्शन, धर्म, इतिहास सामाजिक विज्ञान, कला और साहित्य आदि विषयों को पढ़ने में बहुत रुचि लेते थे। इसके अलावा सामाजिक और आध्यात्मिक विषयों के बारे में जानकारी हासिल करना उन्हें अच्छा लगता था। उन्हें हिंदू धर्म ग्रंथों को पढ़ने में भी बहुत रूचि थी। उन्होंने वेद, पुराण, गीता, महाभारत और रामायण भी पढ़ी थी।
इसके अलावा उन्हें भारतीय शास्त्रीय संगीत में काफी रूचि थी। स्कूल और कॉलेज के दिनों में वे नियमित रूप से शारीरिक व्यायाम करते थे और खेलकूद और सामाजिक व संगठित गतिविधियों में भाग लेते थे। कोलकाता के जनरल असेंबली इंस्टिट्यूट, जिसे वर्तमान में स्कॉटिश चर्च कॉलेज के नाम से जाना जाता है, में पढ़ते हुए उन्होंने पश्चिमी दर्शन, पश्चिमी तर्क व यूरोपियन इतिहास का अध्ययन किया। 1884 में उन्होंने फाइन आर्ट में स्नातक की उपाधि हासिल की।
स्नातक के बाद विवेकानंद जी ने कई अंग्रेजी लेखकों के कार्यों का अध्ययन किया जैसे डेविड ह्यूम, इमानुएल कांट, जॉर्ज डब्ल्यू हेगेल, अगस्त काम्टे, चार्ल्स डार्विन, हरबर्ट स्पेंसर आदि। स्वामी विवेकानंद जी हरबर्ट स्पेंसर के विकासवाद से काफी प्रभावित हुए थे। इसलिए उन्होंने हरबर्ट स्पेंसर द्वारा लिखी किताब एजुकेशन (1861 ) को बंगाली भाषा में अनुवादित किया था। स्वामी विवेकानंद जी अपनी विलक्षण बुद्धि, स्मरण शक्ति और शीघ्रता से पढ़ने की क्षमता के लिए जाने जाते थे।
विवेकानंद जी की आध्यात्मिक शिक्षा | Spiritual Education of Vivekananda
ब्रह्मा समाज का प्रभाव | Influence of Brahma Samaj
1880 में स्वामी विवेकानंद जी, केशव चंद्र सेन द्वारा बनाए संगठन नव विधान से जुड़ गए। यह संगठन केशव चंद्र सेन ने रामकृष्ण जी से मिलने व ईसाई धर्म से हिंदू धर्म में पुन: स्थापित होने के बाद बनाया था। 1884 में विवेकानंद जी साधारण ब्रह्मा समाज में शामिल हो गए, जिसकी स्थापना केशव चंद्र सेन और देवेंद्र नाथ टैगोर ने 1884 में ही ब्रह्म समाज की एक अलग शाखा के रूप में की थी।
1881 से 1884 तक स्वामी विवेकानंद जी, केशव चंद्र सेन के ‘Band of Hope’ संगठन में भी सक्रिय रहे थे, जिसका मुख्य उद्देश्य युवाओं में बढ़ती धूम्रपान और शराब की आदतों को हतोत्साहित करना था।
केशव चंद्र सेन व अन्य बुद्धिजीवियों के परिवेश में रहते हुए विवेकानंद जी यहां पश्चिमी दर्शन से परिचित हुए। यहां काम करते हुए हुए उन्होंने नई मान्यताओं व अवधारणाओं को अपनाया। अब वे निराकार ईश्वर में विश्वास करने लगे थे और मूर्ति पूजा को नकारते थे।
ईश्वर के अस्तित्व पर सवाल | Question about the existence of god
एक बार स्वामी विवेकानंद जी के मन में ईश्वर के अस्तित्व के बारे में सवाल उठा। निराकार चीजों यानी जिनका कोई आकार, रंग, रूप और अस्तित्व ना हो उन पर विश्वास करना किसी भी व्यक्ति के लिए संशय की स्थिति पैदा कर सकता है। जाहिर सी बात है विवेकानंद जी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। वे जानना चाहते थे कि क्या दुनिया में ऐसा कोई व्यक्ति है जिसने भगवान को देखा हो। उन्होंने कोलकाता के बहुत से संतो, विद्वानों से पूछा कि क्या उन्होंने कभी भगवान को देखा है।
सभी ने अपने – अपने अनुभव के आधार पर भगवान के अस्तित्व का वर्णन किया। लेकिन विवेकानंद जी किसी भी व्यक्ति के जवाब से संतुष्ट नहीं हुए। एक बार जब विवेकानंद जी ने देवेंद्र नाथ टैगोर से भी यही सवाल पूछा तो उन्होंने स्वामी विवेकानंद जी के सवाल का जवाब देने की बजाय उनसे कहा कि “ बच्चे ! तुम्हारे पास एक योगी की आंखें हैं।” बाद में विवेकानंद जी जब राम कृष्ण से मिले तब उन्हें अपने सवाल का संतोषजनक जवाब मिला। रामकृष्ण ने उनके प्रश्न का उत्तर यह कहते हुए दिया कि “ हां बच्चे ! मैंने भगवान को देखा है। उसी तरह से जैसे मैं तुम्हें देख सकता हूं। बस एक गहन अर्थ में।”
गुरु रामकृष्ण से मुलाकात | Swami Vivekanand meeting with guru Ramakrishna
स्वामी विवेकानंद जी पहली बार रामकृष्ण जी से 1881 में मिले थे और यहीं से धीरे-धीरे उनके दर्शन, उनके विचारों और उनकी अवधारणाओं से परिचित होते रहे और उनके प्रति विवेकानंद जी का लगाव बढ़ता रहा। 1884 में विवेकानंद जी के पिताजी का देहांत होने के बाद रामकृष्ण जी पूरी तरह से उनके आध्यात्मिक जीवन का केंद्र बन गए।
विवेकानंद जी को पहली बार राम कृष्ण जी के बारे में साहित्य की एक क्लास में पता चला, जब जनरल असेंबली इंस्टिट्यूशन में साहित्य की क्लास में प्रोफेसर विलियम हेस्टी ने विलियम वर्ड्सवर्थ की कविता ‘The Excursion’ को परिभाषित कर रहे थे। जब वे ‘Trance’ शब्द का सही अर्थ समझाने में असमर्थ रहे, तो उन्होंने विवेकानंद जी समेत अन्य छह – सात बच्चों को ‘Trance’ शब्द का सही अर्थ जानने के लिए राम कृष्ण जी से मिलने और उनके स्थान दक्षिणेश्वर जाने की सलाह दी। इसके बाद नवंबर 1881 में वे रामकृष्ण जी से पहली बार व्यक्तिगत रूप से मिले। हालांकि विवेकानंद जी ने इसे अपनी पहली मुलाकात नहीं माना और ना ही किसी जगह इस मुलाकात का उल्लेख है।
इसके बाद 1881 के अंत और 1882 की शुरुआत में विवेकानंद जी अपने दो साथियों के साथ राम कृष्ण जी से मिलने के लिए दक्षिणेश्वर गए। यह मुलाकात विवेकानंद जी के जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई। हालांकि शुरुआत में ही विवेकानंद जी ने रामकृष्ण जी को अपना गुरु स्वीकार नहीं कर लिया था। बल्कि शुरुआत में तो उन्होंने रामकृष्ण जी की गई मान्यताओं व अवधारणाओं पर मतभेद व्यक्त किया था।
उन्होंने शुरुआत में रामकृष्ण जी के परम आनंद और दर्शन को केवल कल्पना और मतिभ्रम के रूप में देखा और ब्रह्मा समाज के विचारों के प्रभाव के कारण उन्होंने रामकृष्ण जी के मूर्ति पूजा, बहुदेववाद और रामकृष्ण की काली देवी पूजा का विरोध भी किया। लेकिन बाद में जब रामकृष्ण द्वारा उनके सभी सवालों का तर्कपूर्ण जवाब हासिल हो गया तो वे रामकृष्ण जी के व्यक्तित्व से धीरे-धीरे प्रभावित होने लगे और अक्सर रामकृष्ण जी से मिलने के लिए दक्षिणेश्वर आने लगे।
1884 में जब अचानक विवेकानंद जी के पिताजी की मृत्यु हो गई तो उनका परिवार दिवालियापन के कगार पर आ खड़ा हुआ। लेनदारों ने ऋण की अदायगी की मांग करना शुरू कर दिया। जबकि रिश्तेदारों ने उनके पुश्तैनी घर को हड़पने की कोशिश शुरू कर दी। कभी एक संपन्न परिवार से संबंध रखने वाले विवेकानंद जी आज काम मांगने को मजबूर हो गए। लेकिन जब उन्हें कहीं भी काम नहीं मिला तो हताश और निराश विवेकानंद जी ने रामकृष्ण में एकांत पाया और दक्षिणेश्वर कि उनकी यात्राओं में बहुत ज्यादा वृद्धि हो गई।
अब नरेंद्र नाथ की गिनती कॉलेज के सबसे गरीब बच्चों में होने लगी थी। एक बार जब विवेकानंद जी राम कृष्ण जी से मिलने के लिए दक्षिणेश्वर गए हुए थे तो उन्होंने अपनी पारिवारिक स्थिति के बारे में रामकृष्ण जी को बताया और उन्होंने रामकृष्ण जी से उनके परिवार के वित्तीय कल्याण के लिए देवी काली से प्रार्थना करने का अनुरोध किया। लेकिन रामकृष्ण ने उन्हें मंदिर जाकर स्वयँ प्रार्थना करने का सुझाव दिया।
इसके बाद वह तीन बार मंदिर गए लेकिन अपनी पारिवारिक आवश्यकताओं के लिए देवी से प्रार्थना करने में एक बार भी सफल नहीं हुए। इसकी बजाय उन्होंने देवी काली से सच्चे ज्ञान और भक्ति के लिए प्रार्थना की। यहां से विवेकानंद जी के जीवन में एक नया मोड़ आया। वे धीरे-धीरे भगवान को पाने के लिए सब कुछ छोड़ने को तैयार हो गए और यहीं से उन्होंने रामकृष्ण को अपना गुरु स्वीकार कर लिया।
राम कृष्ण जी की मृत्यु | Swami Vivekanand Guru Ramakrishna’s death
1885 में रामकृष्ण जी को गले का कैंसर हो गया, जिसकी वजह से उन्हें सांस लेने और खाने पीने में भी परेशानी होने लगी थी। वह हमेशा खांसते रहते थे। जब रामकृष्ण जी की तबीयत ज्यादा खराब रहने लगी तो विवेकानंद जी व अन्य शिष्यों द्वारा उन्हें कोलकाता से कोसीपोर के एक बगीचे में स्थानांतरित कर दिया गया। यहां राम कृष्ण जी ने शांति और एकांत महसूस किया और निर्विकल्प समाधि का अनुभव किया। राम कृष्ण जी के अंतिम दिनों में विवेकानंद जी व अन्य शिष्यों ने उनकी खूब सेवा की। यहां रहते हुए विवेकानंद जी की आध्यात्मिक शिक्षा जारी रही।
यहां रहते हुए ही विवेकानंद जी ने जाना कि मानव सेवा ही भगवान की सबसे प्रभावशाली पूजा है। यहां विवेकानंद जी ने राम कृष्ण जी की सेवा करते हुए एक अलग पहचान बना ली थी। कोसीपोर में ही राम कृष्ण जी ने सभी शिष्यों को गेरुआ वस्त्र धारण कराए और इस तरह पहले मठ कर्म की स्थापना की। राम कृष्ण जी ने विवेकानंद जी को बाकी सभी शिष्यों का ध्यान रखने और मठ की मान्यताओं व नियमों से परिचित कराया और सभी शिष्यों को विवेकानंद को नेता के रूप में देखने को कहा। इस तरह विवेकानंद जी राम कृष्ण जी की मृत्यु ( 16 अगस्त, 1886 ) के बाद मठ प्रमुख बने।
प्रथम रामकृष्ण मठ की स्थापना | Establishment of the first Ramakrishna Math
राम कृष्ण जी की मृत्यु के बाद उनके समर्थकों ने मठ में आना बंद कर दिया। जिसकी वजह से शिष्यों को खाने-पीने तक के लाले पड़ गए। परिणाम स्वरूप कई शिष्यों ने भक्ति मार्ग छोड़कर गृहस्थ जीवन अपना लिया। विवेकानंद जी दूसरे शिष्यों के साथ किसी नए स्थान की खोज में निकल पड़े। बारानगर में उन्होंने एक पुराने घर को मठ में बदलने का फैसला किया। बारानगर के इसी घर में उन्होंने प्रथम रामकृष्ण मठ की स्थापना की।
यहां के बारे में बात करते हुए विवेकानंद जी ने एक बार कहा था कि “बारानगर के मठ में हमने बहुत धार्मिक अभ्यास किया। हम सभी शिष्य 3:00 बजे उठकर ही जप और ध्यान में लीन हो जाया करते थे। उन दिनों हमारे अंदर आसक्ति ( किसी भी चीज का मोह ना होना ) की इतनी प्रबल भावना उत्पन्न हो गई थी कि हमें यह भी याद नहीं था कि बाहर कोई दुनिया है भी या नहीं।”
अंतपुर में मठ वासी प्रतिज्ञा | The monastic vows at Antapur
1886 के दिसंबर माह में विवेकानंद जी के एक भिक्षु भाई बाबूराम की माता ने सभी शिष्यों को उनके गांव अंतपुर आने का निमंत्रण दिया। जिसे भिक्षुओं ने स्वीकार कर लिया। दिसंबर के आखिरी दिनों में विवेकानंद जी और अन्य भिक्षु अंतपुर के लिए निकल पड़े। 1886 की क्रिसमस की पूर्व संध्या पर विवेकानंद जी ने मठ के अन्य 8 शिष्यों के साथ औपचारिक मठ वासी प्रतिज्ञा ली और अपने गुरु रामकृष्ण जी की तरह जीवन बिताने का फैसला किया। यहीं पर विवेकानंद जी ने नरेंद्र नाथ से स्वामी विवेकानंद नाम भी धारण किया।
स्वामी विवेकानंद द्वारा संपूर्ण भारत भ्रमण | All India Tour by Swami Vivekananda
1888 में विवेकानंद जी ने परिव्राजक ( एक भटकता हुआ भिक्षु, जिसका ना कोई निश्चित निवास हो और ना ही कोई सगा संबंधी। वह स्वतंत्र और निछंद होकर जहां चाहे जा सकता है ) के रूप में मठ को छोड़ दिया और अगले 5 वर्षों तक उन्होंने बड़े पैमाने पर संपूर्ण भारत की यात्रा की। उन्होंने उस समय भारत में विद्यमान विभिन्न शिक्षा केंद्रों का दौरा किया और विविध धार्मिक परंपराओं और सामाजिक प्रतिमानों से खुद को परिचित करवाया।
5 वर्षों की संपूर्ण यात्रा में उनकी एकमात्र संपत्ति थी उनका एक कमंडल ( पानी और भोजन का बर्तन ), उनके कुछ शिष्य और उनकी दो पसंदीदा किताबें ‘भगवत गीता’ और ‘द इमिटेशन ऑफ क्राइस्ट’ . भारत भ्रमण के दौरान उन्होंने लोगों के दुख दर्द और पीड़ा को समझा, गरीबों और असहायों के प्रति सहानुभूति विकसित की और राष्ट्र उत्थान का संकल्प लिया। इस दौरान उन्होंने अपनी अधिकतर यात्रा पैदल और रेलवे के द्वारा ही की।
इस यात्रा के दौरान वे सभी धर्मों के लोगों जैसे हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन और बौद्ध आदि से मिले और इसके अलावा उन्होंने जीवन के विभिन्न क्षेत्रों से संबंधित लोगों जैसे राजा, दीवान, सरकारी अधिकारी, पेरियार ( छोटी जाति के कार्यकर्ता ) आदि से भी मुलाक़ात की और देश व देशवासियों को सही से जानने की कोशिश की।
पश्चिम की पहली यात्रा | First travels to the West (1893 to 1897)
31 मई 1893 को स्वामी विवेकानंद जी मुंबई से शिकागो के लिए पानी के जहाज से रवाना हुए और 30 जुलाई 1893 शिकागो ( सयुंक्त राज्य अमेरिका ) पहुंचे। इस दौरान उन्होंने मुंबई से शिकागो के रास्ते में पड़ने वाले विभिन्न देशों जैसे जापान, चीन, कनाडा आदि देशों के विभिन्न शहरों का दौरा भी किया। विवेकानंद जी यहां शिकागो में, 11 सितंबर 1893 में होने वाली विश्व के सभी धर्मों की संसद ‘विश्व धर्म संसद’ के लिए उपस्थित हुए थे। विवेकानंद जी को यहां ब्रह्मा समाज और थियोसोफिकल सोसायटी की तरफ से सनातन धर्म के प्रतिनिधि के रूप में आमंत्रित किया गया था
यह धर्म संसद वहाँ के एक रहस्यवादी वैज्ञानिक इमानुएल स्वीडनबोर्ग और सुप्रीम कोर्ट के एक प्रसिद्ध जज चार्ल्स सी. बोन्नी की पहल थी। वे चाहते थे कि दुनिया के सभी धर्म एक मंच पर इकट्ठा हो, जिससे दुनिया के सभी धर्मों में जो अच्छी चीजें हैं, उन्हें जाना जा सके और मानव जीवन की बेहतरी के लिए उनका उपयोग किया जा सके।
विश्व धर्मों की संसद | Parliament of World Religions (1893)
11 सितंबर 1893 को अमेरिका के शहर शिकागो के ‘आर्ट इंस्टिट्यूट ऑफ शिकागो’ में विश्व धर्म संसद का आयोजन किया गया। विश्व के विभिन्न देशों और धर्मों का प्रतिनिधित्व करने वाले विभिन्न व्यक्ति अपने अपने धर्म और संस्कृति के बारे में बता रहे थे। क्योंकि स्वामी विवेकानंद जी भी भारत की तरफ से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व करने के लिए शिकागो विश्व धर्म संसद में उपस्थित हुए थे, इसलिए उन्हें भी अपने सनातन धर्म से संबंधित संबोधन के लिए मंच पर बुलाया गया।
स्वामी विवेकानंद जी को उनके संबोधन के लिए केवल 2 मिनट दिए गए थे। वह मंच पर पहुंचे, हालांकि वे थोड़ा घबराए हुए थे। लेकिन उन्होंने देवी सरस्वती का नमन करते हुए अपने भाषण की शुरुआत की। उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत ‘सिस्टर्स एंड ब्रदर्स ऑफ अमेरिका’ यानि ‘अमेरिका की मेरी बहनों और भाइयों’ से की। उनके यह शब्द सुनकर वहां उपस्थित सात हज़ार श्रोताओं ने खड़े होकर 2 मिनट तक तालियां बजाई।
2 मिनट बाद जब लोगों की तालियां बंद हो गई तब उन्होंने अपना भाषण शुरू किया। उन्होंने सनातन धर्म के बारे में बोलते हुए कहा कि “सनातन धर्म दुनिया में भिक्षुओं का सबसे प्राचीन धर्म और सन्यासियों का वैदिक आदेश है। यह एक ऐसा धर्म है जिसने दुनिया को सहिष्णुता और सार्वभौमिकता सिखाई है। जिस तरह जल के विभिन्न स्रोत विभिन्न स्थानों पर होते हैं, लेकिन जल धाराओं ( नदियों ) के रूप में एक स्थान यानी समुंदर में आकर मिल जाते हैं। उसी तरह मानव भी भिन्न-भिन्न धार्मिक मार्गों के माध्यम से ईश्वर की ओर आते हैं और उसे हासिल कर लेते हैं।”
शैलेंद्र नाथ धर के अनुसार उनका भाषण छोटा ही था, लेकिन इसने पूरे धर्म संसद को बहुत ज्यादा प्रभावित किया था। धर्म संसद के अध्यक्ष जॉन हेनरी बैरो के अनुसार “ धर्मों की जननी भारत की तरफ से स्वामी विवेकानंद जी, एक नारंगी भिक्षु ( क्योंकि स्वामी विवेकानंद जी ने भगवा कपड़े पहने थे ) ने प्रतिनिधित्व किया। उनके भाषण का सबसे ज्यादा प्रभाव हमारे ऑडिटर्स पर पड़ा।” बाद में वहां की प्रेस ने भी विवेकानंद जी को भारत के चक्रवाती भिक्षु के रूप में छापा। The New York Critique ने विवेकानंद जी के बारे में लिखते हुए कहा कि वे एक ऐसे वक्ता हैं जिन्हें देवी अधिकार प्राप्त है।
धर्म संसद के बाद विवेकानंद जी ने एक अतिथि के रूप में अमेरिका के कई हिस्सों का दौरा किया। धर्म संसद में दिए भाषण के कारण वे अमेरिका में काफी लोकप्रिय हो गए थे। ब्रुकलिन एथिकल सोसाइटी में एक प्रश्न – उत्तर सत्र के दौरान उन्होंने एक सवाल का जवाब देते हुए टिप्पणी की कि “ जिस तरह महात्मा बुद्ध ने पूर्व के देशों को संदेश दिया था, उसी तरह से मेरे पास भी पश्चिम के लिए एक संदेश है।”
विवेकानंद जी लगभग 2 सालों तक अमेरिका में ही रहे और वहां उन्होंने पूर्वी और मध्य अमेरिका के कई शहरों में अपने व्याख्यान दिए। वही रहते हुए 1894 में उन्होंने न्यूयॉर्क में वेदांत सोसाइटी की स्थापना की।
इसी दौरान उन्होंने 1895 में और 1896 में दो बार यूके ( यूनाइटेड किंगडम ) की भी यात्रा की और वहां अपने व्याख्यान भी दिए। यहीं पर 1895 में उनकी मुलाकात एक आयरिश महिला मार्गरेट एलिजाबेथ नोबेल से हुई, जो बाद में सिस्टर निवेदिता बनी।
पश्चिमी देशों में जैसे अमेरिका, यूके, जर्मनी आदि की यात्रा से विवेकानंद जी के मिशन को बहुत सफलता मिली और इन पश्चिमी देशों में भी वेदांत केंद्रों की स्थापना हुई। विवेकानंद जी ने अपने पश्चिमी धर्म प्रशंसकों की जरूरतों व समझ के अनुरूप पारंपरिक सनातन विचारों और धार्मिकता को अपनाया।
16 दिसंबर 1896 को विवेकानंद जी ने इंग्लैंड से अपने कुछ शिष्यों, श्रीमती सेवियर और जे जे गुडविन के साथ भारत के लिए यात्रा शुरू की। इस यात्रा के बीच में ही उन्होंने रास्ते में फ्रांस और इटली का भी दौरा किया। बाद में सिस्टर निवेदिता भी उनके पीछे पीछे ही भारत आ गई थी, जिन्होंने अपना शेष जीवन भारतीय महिलाओं और भारत की शिक्षा के लिए समर्पित कर दिया।
भारत वापसी | Return to India (15 January 1897)
15 जनवरी 1897 में उनका जहाज कोलंबो पहुंचा ( उस समय का ब्रिटिश सीलोन और आज का श्रीलंका ), जहां उनका बहुत गर्मजोशी से स्वागत किया गया। यहां कोलंबो में उन्होंने एक सार्वजनिक भाषण दिया और आगे की यात्रा पर चल पड़े। यहां से उन्होंने कोलकाता के लिए अपनी यात्रा शुरू की।
अपनी इस यात्रा के दौरान उन्होंने कोलंबो से पवन द्वीप, रामेश्वरम, रामनाड, मदुरै, कुंभकोणम और मद्रास की यात्रा की और यहां हर जगह उन्होंने अपने व्याख्यान भी दिए। हर जगह उनका जोरदार स्वागत किया गया। उनकी ट्रेन यात्रा के दौरान लोग उनके व्याख्यान सुनने के लिए पटरियों पर बैठ जाया करते थे। मद्रास से उन्होंने कोलकाता और कोलकाता से अल्मोड़ा के लिए यात्रा शुरू की।
जहां पश्चिमी देशों में दिए उनके व्याख्यानों में वे भारत की महान आध्यात्मिक विरासत के बारे में बात करते थे। वहीं भारत में दिए उनके व्याख्यानों का विषय राष्ट्र व राष्ट्र के नागरिकों का उत्थान करना, जाति व्यवस्था को समाप्त करना, देश में विज्ञान, टेक्नोलॉजी और औद्योगीकरण को बढ़ावा देना, गरीबी को उन्मूलन करना और औपनिवेशिक शासन को खत्म करना होता था।
कोलंबो से अल्मोड़ा तक स्वामी विवेकानंद जी के सभी व्याख्यान उनकी किताब ‘Lectures from Colombo to Almora’ में संकलित है, जो उनकी राष्ट्रवादी सोच और आध्यात्मिक विचारधारा को प्रदर्शित करते हैं।
रामकृष्ण मिशन की स्थापना | Establishment of Ramakrishna Mission
कोलकाता आने के बाद स्वामी विवेकानंद जी ने 1 मई 1897 को समाज सेवा के लिए कोलकाता में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। रामकृष्ण मिशन कर्म योग पर आधारित है। रामकृष्ण मठ और रामकृष्ण मिशन दोनों का मुख्यालय बेलूर मठ है। इसके अलावा उन्होंने दो अन्य मठों की भी स्थापना की हिमालय के मायावती में अद्वैत आश्रम और दूसरा मद्रास में।
पश्चिमी देशों की दूसरी यात्रा | Swami Vivekanand second trip to western countries
जून 1899 में स्वास्थ्य में गिरावट के बावजूद स्वामी विवेकानंद जी ने बहन निवेदिता और स्वामी तुरियानंद के साथ पश्चिमी देशों की दूसरी यात्रा की। इंग्लैंड में कुछ समय तक रहने के बाद वे संयुक्त राज्य अमेरिका चले गए। यहां उन्होंने सैन फ्रांसिस्को और न्यूयॉर्क में वेदांत सोसाइटी की स्थापना की।
इसके अलावा उन्होंने कैलिफोर्निया में शांति आश्रम की भी स्थापना की। साल 1900 में धर्म कांग्रेस में भाग लेने के लिए वे पेरिस चले गए। वहीं से उन्होंने ब्रिटनी, वियना, इस्तांबुल, एथेंस और मिस्र का भी दौरा किया। 9 दिसंबर, 1900 को वे दोबारा भारत लौट आए।
विवेकानंद जी की मृत्यु | Death of Swami Vivekananda
पश्चिमी देशों की अपनी दूसरी यात्रा से लौटने के बाद विवेकानंद जी ने मायावती में स्थित अद्वैत आश्रम की एक छोटी सी यात्रा की और उसके बाद वे बेलूर मठ में आकर रहने लगे। यही रहते हुए उन्होंने रामकृष्ण मिशन पर काम किया और इंग्लैंड व अमेरिका में अपने मिशन के कार्यों का भी समन्वय किया। यहां उनके स्वास्थ्य में काफी गिरावट आ चुकी थी। इसी कारण वे 1901 में जापान में हुए विश्व धर्म कांग्रेस में भी भाग नहीं ले पाए, हालांकि उन्होंने बोधगया और वाराणसी की तीर्थ यात्रा जरूर की।
बाद में जब अस्थमा, मधुमेह और अनिद्रा के कारण स्वास्थ्य में अत्यधिक गिरावट आ गई तो उनकी सभी गतिविधियां बंद हो गई। 4 जुलाई 1902 को ( उनकी मृत्यु के दिन ) वह सुबह जल्दी उठें और बेलूर मठ में 3 घंटों तक ध्यान मुद्रा में बैठे रहे। उस दिन उन्होंने अपने विद्यार्थियों को भी शुक्ल यजुर्वेद, संस्कृत व्याकरण और योग दर्शन का पाठ भी पढ़ाया।
शाम को लगभग 7:00 बजे वे अपने कमरे में गए और अपने शिष्यों को बोल दिया कि कोई भी उन्हें परेशान ना करें। रात लगभग 9:20 बजे ध्यान समाधि के दौरान ही उनकी मृत्यु हो गई। उनके शिष्यों के अनुसार उन्होंने महासमाधि हासिल की। लेकिन डॉक्टरों ने उनकी मृत्यु का कारण उनके दिमाग की नसें फटने को बताया। बेलूर में गंगा नदी के तट पर उनका अंतिम संस्कार किया गया, वहीं पर जहां 16 साल पहले उनके गुरु रामकृष्ण जी का अंतिम संस्कार किया गया था।
विवेकानंद जी का प्रभाव व विरासत | Influence and Legacy of Vivekananda
स्वामी विवेकानंद जी नव वेदांत के मुख्य प्रतिनिधियों में से एक थे। उनके राष्ट्रवादी विचारों ने कई भारतीय विचारकों व नेताओं को प्रभावित किया। श्री अरबिंदो घोष ने विवेकानंद जी को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में माना जिन्होंने भारतीयों को आध्यात्मिक रूप से जागृत किया। वही महात्मा गांधी ने उन्हें उन हिंदू धर्म सुधारकों में गिना जिन्होंने धर्म की बुराइयों को काटकर धर्म को भव्यता की स्थिति में रखा।
- सितंबर 2010 में उस समय के केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ( जो 2013 से 2017 तक भारत के राष्ट्रपति भी रह चुके हैं ) ने स्वामी विवेकानंद जी के नाम से स्वामी विवेकानंद वैल्यू एजुकेशन प्रोजेक्ट शुरू किया। जिसके लिए एक अरब रुपए की मंजूरी दी गई। इस प्रोजेक्ट का मुख्य उद्देश्य विद्यार्थियों को प्रतियोगिताओं, निबंध लेखन, चर्चाओं आदि के लिए प्रेरित और प्रोत्साहित करना व विभिन्न भाषाओं में स्वामी विवेकानंद के कार्यों को प्रकाशित करना था।
- साल 2011 में पश्चिमी बंगाल ने अपने राज्य पुलिस ट्रेनिंग कॉलेज का नाम बदलकर स्वामी विवेकानंद स्टेट पुलिस अकैडमी वेस्ट बंगाल रख दिया।
- छत्तीसगढ़ सरकार ने स्टेट टेक्निकल यूनिवर्सिटी छत्तीसगढ़ का नाम बदलकर स्वामी विवेकानंद टेक्निकल यूनिवर्सिटी छत्तीसगढ़ रख दिया।
- साल 2012 में छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के एयरपोर्ट का नाम बदलकर स्वामी विवेकानंद एयरपोर्ट रखा गया।
- आपको शायद पता होगा की भारत में मनाया जाने वाला युवा दिवस 12 जनवरी, स्वामी विवेकानंद जी के जन्मदिन के दिन ही मनाया जाता है।
- इसके अलावा 11 सितंबर, जिस दिन उन्होंने विश्व धर्म संसद शिकागो में भाषण दिया था उस दिन को ‘विश्व ब्रदर्सहुड दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।
स्वामी विवेकानंद जी पर बनी फिल्में | Movies made on the life of Swami Vivekananda
स्वामी विवेकानंद जी की 150वीं जयंती ( 2013 ) पर उन्हें श्रद्धांजलि के रूप में भारतीय फिल्म निर्देशक उत्पल सिन्हा ने एक फिल्म “द लाइट: स्वामी विवेकानंद” बनाई इसके अलावा उनके जीवन पर आधारित अन्य भारतीय फिल्में भी हैं।
- 1949 में निर्देशक अमर मलिक द्वारा बनाई फ़िल्म ‘स्वामी जी’
- 1955 में अमर मलिक द्वारा बनाई गई दूसरी फिल्म ‘स्वामी विवेकानंद’
- 1964 में मोधु बसु द्वारा बनाई फिल्म ‘बीरेश्वर विवेकानंद’
- 1964 में ही विमल रॉय द्वारा बनाई गई एक वृत्तचित्र फिल्म ‘स्वामी विवेकानंद का जीवन और संदेश’
- 1988 में जीवी अय्यर के निर्देशन में बनी फिल्म ‘स्वामी विवेकानंद’
- 2012 में माणिक सरकार के निर्देशन में बनी ‘स्वामी जी’, जो एक लेजर लाइट फिल्म थी।
- साल 2014 में शुकंकण रॉय के निर्देशन में बनी फिल्म ‘साउंड ऑफ जॉय’, जो स्वामी विवेकानंद जी के आध्यात्मिक जीवन पर आधारित एक एनिमेटेड फिल्म थी। जिसने 2014 में सर्वश्रेष्ठ नॉन फीचर एनिमेशन फिल्म का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी जीता था।
स्वामी विवेकानन्द छात्रवृत्ति | Swami Vivekananda Scholarship
Swami Vivekananda Scholarship उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले आर्थिक रूप से वंचित बैकग्राउंड के छात्रों का समर्थन करने के लिए पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा कार्यान्वित एक योग्यता-सह-साधन ( merit-cum-means ) छात्रवृत्ति योजना है। इस योजना का उद्देश्य अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के छात्रों के बीच शिक्षा को बढ़ावा देना और उत्कृष्टता को प्रोत्साहित करना है।
स्वामी विवेकानंद जी के कोट्स | Swami Vivekananda Quotes In Hindi
- उठो, जागो और तब तक मत रुको। जब तक लक्ष्य प्राप्त ना हो जाए। स्वामी विवेकानंद जी का यह सबसे प्रसिद्ध उद्धरण 26 जनवरी 1897 को कुंभकोणम तमिलनाडु में कहा गया था।
- हम जो बोते हैं, वह काटते हैं। हम स्वँय अपने भाग्य के निर्माता है।
- जो कुछ भी तुम्हें कमजोर बनाता है शारीरिक, बौद्धिक या मानसिक रूप से, उसे जहर की तरह त्याग दो
- जैसा तुम सोचते हो, वैसे ही बन जाओगे। अगर खुद को कमजोर मानोगे, तो कमजोर ही बनोगे और खुद को ताकतवर मानोगे तो ताकतवर बन जाओगे।
- हम वह है जो हमें हमारी सोच ने बनाया है। इसलिए इस बात का ध्यान रखिए कि आप क्या सोचते हैं।
- चिंतन करो, चिंता नहीं, नए विचारों को जन्म दो।
- जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते। तब तक आप भगवान पर भी विश्वास नहीं करते।
दोस्तों, स्वामी विवेकानंद जी एक अद्भुत व्यक्तित्व के धनी थे। उन्होंने धर्म, दर्शन और अध्यात्म को नए आयाम दिए। भारतीय दर्शन को पश्चिमी देशों तक पहुंचाने वाले वे एकमात्र व्यक्ति थे, जिन्होंने संपूर्ण भारत की यात्रा करके यह जाना कि भारत एक नहीं बल्कि विभिन्न धार्मिक समूहों व धार्मिक मान्यताओं के लोगों से बना है।
उन्होंने भारत में फैली जाति व्यवस्था का घोर विरोध किया और देश में विज्ञान, टेक्नोलॉजी और औद्योगीकरण को बढ़ावा देने का समर्थन किया। स्वामी विवेकानंद जी उस समय के आधुनिक विचारों को मानने वाले थे और धर्म में पाखंडवाद व अन्य धार्मिक परपंचों का कड़ा विरोध करते थे। दोस्तों, हमें हमारे देश के ऐसे महान व्यक्तियों पर गर्व करना चाहिए।
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